बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

---------जिंदगी(एक-तलाश)---------------

हर घड़ी हर पल रंग
बदल रही है जिंदगी
खुद से ही खुद के होने का पता पूछ रही है जिंदगी हर एक चेहरे पर कितने हैं रंग चढ़े हुऐ रिशतो मैं ही रिश्तों को तलाश रही है जिंदगी बदलते मौसम की तरह बदलते हैं रिशते यहाँ खून ही खून पर उठा रहा है उँगलियाँ हर सवाल का जबाब दे रही खामोशियाँ खामोशियों के इस संमदर मैं घिरा हुआ हर आदमी बात-बात पर दी जाती हैं रिशतों की दुहाईयाँ अपने ही वजूद को भूल रहा हर आदमी अपने ही गुरूर मैं खो गया है इस कदर अपनी जड़ो से दूर भाग रहा हर आदमी अपने ही आप मैं खुद को ही तलाशती अपनी लाश को ढ़ो रही है जिंदगी हर घड़ी हर पल रंग बदल रही है जिंदगी ...राधा श्रोत्रिय"आशा"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें