शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

कल रात,एक रिश्ते का, खूँन हुआ है,
साथ बिताये,पलों पर दिल,सवाल करता है!
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"
०८-०२-२०१५

बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

आँखों में उनकी, गहरी कशिश है,
उबरने की कोशिश में,डूब जाते है!
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"
१३-०२-२०१५

*** इल्जाम *

************** इल्जाम *****************
जिनकी खातिर खुद को, मिटा लिया हमने,
हमारी खुद्दारी पर क्यों ,वो इल्जाम लगाते हैं!
खबाबों को दफ़नाकर ,वो मेरे,
दिल अपना चीर के दिखाते हैं !
क्या नहीं जानते हैं वो कि,
मुर्दों के एहसास भी मर जाते हैं!
मौत तो सच है,जीवन का,
आने वाले ये जहाँन, छोड जाते हैं!
मौत से डर नहीं हमें देखो,
उनकी नफ़रत से ही ,बेमौत मर जाते हैं!
जीते जी कद्र नहीं की जिसने,
क्यों बाद मरने के वो, दिया जलाते हैं!
क्या नहीं जानते हैं वो"आशा"
जिस्म के साथ दिल भी जल जाते हैं!
जिनकी खातिर खुद को, मिटा लिया हमने,
हमारी खुद्दारी पर क्यों ,वो इल्जाम लगाते हैं!
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"
११-०२-२०१५

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

सिर अपना सज़दे में मैने,उन्ही के झुका दिया,
रूह को मेरी जिस्म का जिन्होने,चोला दिया !
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"
१८-०२-२०१५

*** गुमाँन ****

*********** गुमाँन ***************
पंच तत्वों की ,काया पर इंसान​,
क्यों इतना गुमाँन करे !
सदियों सी बटी हुई दिल की बाती,
सुलगती जा रही है !
तन की माटी का मोह, जाता नहीं,
मन की हाँडी में ख्बाईशें ,
उबलती जा रही हैं !
ऋतु बदली,बदला मौसम ,
मन का "मैं"जाता नहीं !
प्यार ,मोहब्बत जज्बातों से परे,
आत्मा मुक्ती चाह रही है!
रिश्तों में सीलन, देर तक रहे,
फफूँद जाती नहीं!
दिल के आँगन में सूरज के
 चूल्हे की आग​,
धधकती जा रही है!
जिंदगी के बोझ तले अब​,
घुटन सी लगती है!
 मोहन ! तेरे मिलन की चाह ,
मन को जला रही है!
दिल की लगन तुमसे,"आशा",
लफ़्ज़ों में कह न पाये!
 मोहन ! शीश रख दिया,
 चरणों में  तेरे,
 अँखिया क्यों नीर बहा रही हैं !
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"........
१६-०२-२०१५

संग तुम्हारे

********** संग तुम्हारे ***********
उम्र की झोली से आज,
कुछ हसीन लम्हें,
चुरा लिये हमने !
तोड जमाने के बंधन सारे,
संग तुम्हारे कुछ ख्बाब ,
बुन लिये हमने !
अंबर की पाक गागर से,
बादल का एक टुकडा,
ले लिया हमने !
बैठकर चाँदनी की छाँव तले,
मोहब्बत के जाम घूँट -घूँट,
पी लिये हमने !
निकल आये दूर, दुनीयाँ से हम​,
संग तुम्हारे ,कुछ हसीन लम्हे,
जी लिये हमने !
वक़्त की सलाईयों पर बुने,
सपनो से ,एक सिरा आज ,
फाड लिया हमने !
मोहब्बत पर मज़हब के,
न रहें पहरे,राम रहीम नाम ,
लिख लिये हमने !
जीने -मरने का फ़र्क"आशा"मिट जाये,
जीवन के सारे लम्हें संग तुम्हारे,
लिख लिये हमने !
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"........
१४-०२-२०१५

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

** तुम ****

******* तुम ***********
सुबह की कोमल​,
रशमियों के जैसे!
मन आँगन में,
बिखर जाते हो तुम​!
ढलती शाम में,
ख्बाब हो जैसे !
 चुपके से ,पलकों तले,
उतर आते ,हो तुम !
रात को बताते हो,
घनी ज़ुल्फ़ों के साये !
क्या आँचल को आस्माँ,
समझ जाते हो तुम !
रात भर नहाकर के,
चाँदनी में!
मेरे रुखसारों पर ,
ढुलक जाते हो तुम​!
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"
१०-०२-२०१५

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

,कशिश

*********,कशिश ********

लाख कोशिश की उन्हें,
भूल जायें!
पर चाहकर भी,
उन्हें न भूल पाये...
न जाने कैसी,कशिश है उनमें,
जितना भूलना चाहा,
वो उतने ही याद आये!
बडा जिद्दी है ये दिल​,
दर्द जुदाई का भी ,
न सह पाये!
जब दरकता है,कुछ दिल में,
टीस सी उठ आती है!
बहुत कोशिश की,
दिल को मनायें!
जो नसीब में नहीं,
उसे कैसे हम पाये!
आँसू भी साथ, न दे पाये,
लगता है समझदार हो गये!
बहना नहीं चाहते उसके लिये,
जो हमें इतना सताये!
बदलना सीख गये ,
वक़्त के साथ ये भी,
आँखों में ही, ठहर गये!
प्यार हो आया इनसे,
हमसे समझदार ये निकले ,
कीमत अपनी पहचान गये!
लाख कोशिश की उन्हें,
भूल जायें!
पर चाहकर भी, उन्हें न भूल पाये...
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"
०५-०२-२०१५

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

**** माँ ***

********* माँ **********
कविता जैसी कोमल माँ,
माँ गंगाजल सी पावन है!
माँ ममता का गहरा सागर ,
प्यार भरा माँ का आँचल है!

गर्भ में पहली अनुभूति से,
जो संस्कारों से पोषित करती है!
गर्भ की पीडा सहकर भी जो,
संतान की खातिर खुश रहती है!

माँ की ममता इतनी गहरी,
 कि सागर रीते पड जाते हैं!
माँ की ममता की छाँव तले,
नन्हें अंकुर वृक्ष बन लहलहाते हैं!

माँ ही गुरू है,माँ ही ईश्वर​,
 माँ में सारे वेद, समाहित हैं !
हर उपमा में ही है माँ,
नहीं माँं जैसा कोई ओर है!

अपने ही लहू से माँ देखो,
संतान को गर्भ में सिंचित करती है!
दुग्ध पान करा फिर वो,
अपनी संतान में बल भरती है!

माँ का आशीष जहाँ रहता है,
देखो बुरी बलायें नहीं आती हैं!
माँ संतान के भविष्य की खातिर,
सारी दुनियाँ से लड जाती हैं!

कितनी सुंदर कितनी भोली,
माँ सच्ची मित्र सहेली है!

संतान के हित की खातिर​,
माँ ढाल तलवार के जैसी है!

धरा जैसी सहनशील माँ,
हर भूल माफ कर देती है!
बिगड न जाये कहीं बच्चा उसका,
उसे सीख प्यार से देती है!

डाँट में भी माँ की निहित​,
सुख संतान का होता है!
नसीब वाले होते हैं, सिर जिनके,
माँ का आँचल होता है!

भूल से भी अपने बच्चों को,
माँ बद्दुआ नहीं देती हैं!
पर अति सहने कि हो,
नदी भी बाँध तोड देती है!

माँ फूलों की फुलवारी सी,
कदमों में माँ के जन्नत है!
माँ से ही त्यौहार हैं सारे,
माँ में समाहित सब तीरथ हैं!

"आशा" इस जीवन में देखो,
वो कभी नहीं सुख पाते हैं!
अपनी माँ की ममता को जो,
फ़र्ज़ का नाम दे जाते हैं!
किसी भी बच्चे के जीवन से, उसकी माँ का जाना एक एसी क्षति है जिसकी पूर्ती वक़्त भी नहीं कर पाता,जीवन के आखरी पल तक माँ की कमी रहती है,तो आओ सब माँ का सम्मान करें,माँ हर मज़हब जाति पाति से परे कुदरत की अनुपम रचना है,जिसकी गोद के लिये तो स्वंय देवता भी तरसते हैं,जो की समस्त सृष्टी के रचियता हैं!दुनियाँ की हर माँ  को मेरा नमन !
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"
०४-०२-२०१५
मेरी ये रचना मेरी माँ श्रीमति मुन्नी देवी शर्मा ओर परम अदरणीय बाई श्रींमति सरस्वती पँवार को सादर श्रधांजली है...नमन​..

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

जीने की वज़ह

******* जीने की वज़ह **********
रात के आगोश में,
चाँद गुम-सुम  क्यों हैं!
रात गुज़री है आँखों में  ,
उलझन लटों में क्यों हैं!
 मेरी मोहब्बत  है तू ,
तो वज़ह दर्द की, क्यों हैं!
रात के आगोश में,
चाँद गुम-सुम   क्यों हैं!
दूर रहने की जिद दिल ने की,
 हार जाने का डर, क्यों हैं!
मरने का खौफ़ "आशा"  नहीं,
जीने की वज़ह तू, क्यों हैं!
रात के आगोश में,
चाँद गुम-सुम   क्यों हैं!
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"
०३-०२-२०१५