मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

जीने की वज़ह

******* जीने की वज़ह **********
रात के आगोश में,
चाँद गुम-सुम  क्यों हैं!
रात गुज़री है आँखों में  ,
उलझन लटों में क्यों हैं!
 मेरी मोहब्बत  है तू ,
तो वज़ह दर्द की, क्यों हैं!
रात के आगोश में,
चाँद गुम-सुम   क्यों हैं!
दूर रहने की जिद दिल ने की,
 हार जाने का डर, क्यों हैं!
मरने का खौफ़ "आशा"  नहीं,
जीने की वज़ह तू, क्यों हैं!
रात के आगोश में,
चाँद गुम-सुम   क्यों हैं!
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"
०३-०२-२०१५

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति राधा जी ! मन को छू लेने वाले उद्गारों को बड़ी खूबसूरती से शब्दों का बाना पहनाया है आपने ... अति सुन्दर !

    कभी फुर्सत मिले तो ….शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं