मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

----------बचपन----------

कितना प्यारा और मासूम होता है बचपन न इसका कोई मजहब प्यार ही इसका ईमान दो मीठे बोल थोडी सी मुस्कान उसपे ही हो जाता बचपन कुरबान न मँहगें गिफ़्टस न ब्रांड़ेड कपडों की डिमांड़ थोडी सी चाँकलेटस और गुब्बारों मैं खिलखिलाता है बचपन न रिशतों के बंधन न भेद अमीर -गरीब का जो भी हँसके बोल दे उसका ही हो जाता बचपन कितना प्यारा प्यारा और मासूम होता है बचपन ...राधा श्रोत्रिय"आशा"

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