बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

**** माँ ***

********* माँ **********
कविता जैसी कोमल माँ,
माँ गंगाजल सी पावन है!
माँ ममता का गहरा सागर ,
प्यार भरा माँ का आँचल है!

गर्भ में पहली अनुभूति से,
जो संस्कारों से पोषित करती है!
गर्भ की पीडा सहकर भी जो,
संतान की खातिर खुश रहती है!

माँ की ममता इतनी गहरी,
 कि सागर रीते पड जाते हैं!
माँ की ममता की छाँव तले,
नन्हें अंकुर वृक्ष बन लहलहाते हैं!

माँ ही गुरू है,माँ ही ईश्वर​,
 माँ में सारे वेद, समाहित हैं !
हर उपमा में ही है माँ,
नहीं माँं जैसा कोई ओर है!

अपने ही लहू से माँ देखो,
संतान को गर्भ में सिंचित करती है!
दुग्ध पान करा फिर वो,
अपनी संतान में बल भरती है!

माँ का आशीष जहाँ रहता है,
देखो बुरी बलायें नहीं आती हैं!
माँ संतान के भविष्य की खातिर,
सारी दुनियाँ से लड जाती हैं!

कितनी सुंदर कितनी भोली,
माँ सच्ची मित्र सहेली है!

संतान के हित की खातिर​,
माँ ढाल तलवार के जैसी है!

धरा जैसी सहनशील माँ,
हर भूल माफ कर देती है!
बिगड न जाये कहीं बच्चा उसका,
उसे सीख प्यार से देती है!

डाँट में भी माँ की निहित​,
सुख संतान का होता है!
नसीब वाले होते हैं, सिर जिनके,
माँ का आँचल होता है!

भूल से भी अपने बच्चों को,
माँ बद्दुआ नहीं देती हैं!
पर अति सहने कि हो,
नदी भी बाँध तोड देती है!

माँ फूलों की फुलवारी सी,
कदमों में माँ के जन्नत है!
माँ से ही त्यौहार हैं सारे,
माँ में समाहित सब तीरथ हैं!

"आशा" इस जीवन में देखो,
वो कभी नहीं सुख पाते हैं!
अपनी माँ की ममता को जो,
फ़र्ज़ का नाम दे जाते हैं!
किसी भी बच्चे के जीवन से, उसकी माँ का जाना एक एसी क्षति है जिसकी पूर्ती वक़्त भी नहीं कर पाता,जीवन के आखरी पल तक माँ की कमी रहती है,तो आओ सब माँ का सम्मान करें,माँ हर मज़हब जाति पाति से परे कुदरत की अनुपम रचना है,जिसकी गोद के लिये तो स्वंय देवता भी तरसते हैं,जो की समस्त सृष्टी के रचियता हैं!दुनियाँ की हर माँ  को मेरा नमन !
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"
०४-०२-२०१५
मेरी ये रचना मेरी माँ श्रीमति मुन्नी देवी शर्मा ओर परम अदरणीय बाई श्रींमति सरस्वती पँवार को सादर श्रधांजली है...नमन​..

2 टिप्‍पणियां:

  1. एकदम सीधी सच्ची बात कहती कविता जो मेरी अब तक पढ़ी गयी बेहतरीन कविताओं मे से एक है।

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  2. @@संजय भास्‍कर ji :) bahut bahut shukriya..aabhar aapne rachna ko pasand kiya...maa hoti he bahut pyari h..

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