सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

** तुम ****

******* तुम ***********
सुबह की कोमल​,
रशमियों के जैसे!
मन आँगन में,
बिखर जाते हो तुम​!
ढलती शाम में,
ख्बाब हो जैसे !
 चुपके से ,पलकों तले,
उतर आते ,हो तुम !
रात को बताते हो,
घनी ज़ुल्फ़ों के साये !
क्या आँचल को आस्माँ,
समझ जाते हो तुम !
रात भर नहाकर के,
चाँदनी में!
मेरे रुखसारों पर ,
ढुलक जाते हो तुम​!
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"
१०-०२-२०१५

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